Sunday, April 6, 2014

चिलचिलाती धुप और बर्फ का गोला

चुन्नू को बहुत तेज़ भूख और प्यास लग रही थी और सामने बर्फ के गोले वाला भी खड़ा था.… दिन का वक़्त था सो सिग्नल पर गाड़ियां भी कम आ रही थीं।  इतने में ही एक कार वहाँ आकर रुकी।  चुन्नू ने पूरी बेचारगी चेहरे पर लाते हुए पैसे मांगने शुरू किये।  कार के अंदर भी मुह ढके बैठी लड़की ने पर्स खोला और पांच का सिक्का निकलकर उसे दे दिया।  
चुन्नू इतना खुश हुआ कि एक पल को उसकी प्यास ही उड़ गई। लेकिन कुछ ही पलों में सूखे गले से थूक निगलना मुश्किल हो गया।  अब चुन्नू के सामने यक्ष प्रश्न ये था कि पास कि दूकान से पानी का पाउच और दो रूपए वाला बिस्कुट का पैकेट ख़रीदे या गोले वाले से के छोटा वाला गोला मांग ले। पेट और दिल कि जद्दोजहद में चुन्नू वहीँ खड़ा रह गया…… 

Saturday, January 18, 2014

नया कम्बल

चीकू आज बहुत खुश था।  आज रात उसे ओढ़ने के लिए पूरा कम्बल जो मिलने वाला था।  रोज़ रोज़ लाली से कम्बल की खींचा तानी से वो परेशान हो गया था।  एक तो फटा हुआ कम्बल, तिस पर दो लोग उसे ओढ़ें तो ठण्ड से बचाव कैसे हो भला?
शाम को ही एक बड़ी गाडी उनके झोपड़े के बाहर आकर रुकी थी और एक गुड़िया सी दिखने वाली लड़की ने अपनी माँ के साथ बस्ती में कम्बल बांटे थे।  उनके घर भी चार कम्बल आये थे।  तब से चीकू नए कम्बल में सोने के मंसूबे बना रहा था। उसने पूरा हिसाब लगाया था।  एक कम्बल बाबा लेंगे, के माँ लेगी।  मुनिया तो माँ के साथ ही डूबकर सोती है, सो उसके लिए अलग कम्बल कि ज़रूरत नहीं पड़ेगी।  बाकी बचे दो कम्बल उसे और लाली को ही मिलेंगे।  यानि अब वे पूरा पूरा कम्बल ओढ़ पाएंगे।  चीकू ने तो मन ही मन पुराना कम्बल ही हथियाने की बात सोच ली थी।  उसने तय कर लिए था की पुराना वाला कम्बल वो नीचे बिछा लेगा।  फिर तो ठण्ड का एहसास भी नहीं होगा। खाली चादर पर सोने से तो ठण्ड सीधे रीढ़ की हड्डी में घुसती महसूस होती है।  
जैसे जैसे शाम ढाल रही थी वैसे वैसे चीकू कि ख़ुशी बढ़ती जा रही थी।  आज तो उसने खाने के लिए भी लाली से झगड़ा नहीं किया था, बल्कि मुनिया को अपनी बची हुई दाल भी दे दी थी।  लेकिन रात होते होते उसने देखा कि माँ ने एक धूलि चादर निकलकर उसमे वो कम्बल बाँध दिए हैं।  उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।  बाबा भी अपना पुराना कम्बल लेकर लेट गए थे और माँ भी नए कम्बल संभालकर रखने के बाद मुनिया को चिपटकर सोने कि तयारी कर रही थी।  लाली भी बिना किसी उम्मीद के पुराना कम्बल ओढ़कर लेट चुकी थी और साथ ही साथ बोले जा रही थी, आज अगर तूने कम्बल खींचा तो मुक्का मार दूंगी।  
आखिर माँ ने जब देखा कि चीकू परेशां हाल में एकटक उन्ही नए कम्बलों के गठर को देख रहा है, तो उसने चीकू को पास बुलाया और बड़े प्यार से सर पर हाथ फिराते हुए बोली, बेटा हमारे नसीब में तो ये फटे कम्बल ही हैं।  इन नए कम्बलों को कल तेरे बाबा बाज़ार में बेच आयेंगे, तब जाकर अगले हफ्ते का राशन आ सकेगा। ठण्ड की चुभन तो सिर्फ रात को परेशां करती है, लेकिन पेट कि आग न बुझी तो एक एक पल काटना मुश्किल हो जाएगा।  
चीकू समझ गया था कि उसे अब नए कम्बल के लिए अगले साल का इंतज़ार करना होगा।  

Friday, January 17, 2014

एक लेखक की कहानी

जब मन में संवादों का भूचाल आया हुआ हो, तो व्यक्त करने के लिए शब्दो का अकाल पड़ जाता है.....वो भी कई दिनों से अपनी डायरी खोलकर बैठता और थोड़ी देर बाद बिना कुछ लिखे ही बेचैन मन से उठ जाता। शब्दों की खोज में वो इतना डूब गया कि प्यार मोहब्बत नाते रिश्ते सब दूर हो गए.
आखिर एक दिन जब वो कामयाब हुआ तो उसने देखा कि उन शब्दों को पढ़ने वाला कोई नहीं बचा है.… वो थोड़ी देर तो खुश होता रहा और फिर दहाड़ें मारकर रोने लगा।
 आसपास जमा लोगों में से किसी ने फुसफुसाते हुए कहा, 'मैंने तो पहले ही कहा था कि ये पागल हो गया है.…'

Sunday, January 12, 2014

उकताहट

वो उकता गई थी बुरी तरह... उसे कुछ नया चाहिए था ज़िन्दगी में।  उसने अपनी प्रोफाइल बदल डाली और वार्डरॉब भी, फिर भी अंदर कहीं चैन नहीं था.... आखिर ऐसा क्या है जो वो बदल नहीं  पा रही? 
अचानक उसे एहसास हुआ, शादी तो ज़िन्दगी में एक ही बार हो सकती थी और वो वह कर चुकी है..... अब वो क्या करे? कुंडली में भी तो दूजा विवाह नहीं लिखा न..... 

छोटी सी एक ख्वाहिश

वो खुश थी के अपने प्यार से शादी कर रही है.... 
अब तक जो पल उन्हें घूमने या मिलने के लिए चुराने पड़ते थे, अब उसके ख़ज़ाने की चाबी उन्ही के पास रहा करेगी……वो खुश रहेंगे और  न मिल पाने की वजह से जो झगडे होते हैं, वो भी नहीं हुआ करेंगे...  
उसे लगता था की हर छुट्टी वाले दिन वे किसी नै जगह घूमने जाया करेंगे, आखिर दोनों घुमक्कड़ जो ठहरे। 
लेकिन शादी के बाद अब उसे सुबह शाम सिर्फ एक ही ख्याल आता है. दफ्तर जाने से पहले और लौटने के बाद खाने में क्या पकाना है..... छुट्टी वाले दिन घर के कोने में लगा कपड़ों का अम्बार और छत के कोने से झूलते जाले उसे आवाज़ देते ले लगते हैं.… और सारा दिन के काम और थकान के बाद उसके दिल में यही ख्वाहिश जागती है कि काश कल की  सुबह थोड़ी देर से हो तो कितना अच्छा रहेगा। वो भी रज़ाई में थोड़ी और देर दुबकी रह सकेगी, पहले की तरह.…

Thursday, December 26, 2013

मेरी ज़िन्दगी की सांता

ज़िन्दगी के सफ़र में कुछ अज़ीज़ों का साथ छूट जाता है… 
लेकिन उनकी याद ताउम्र दिल में भीनी खुशबु की तरह ज़िंदा रहती है… 

आँखें बंद करते ही, मन कि किताब का वह पन्ना झट से खुल जाता है,
जहाँ उनके साथ बिताये पल यादें बनकर खूबसूरत इबारत में दर्ज रहती है.। 

मुझे जब भी उन अज़ीज़ों से मिलना होता है तो मैं चुपके से आँखें बंद करके,
उनके साथ जिया हुआ वक़्त दोबारा जी लेती हूँ.. 
और उनकी यादों कि खुशबु को अपनी साँसों में भर लेती हूँ.। 

वो भी तो किसी भीनी खुशबु से कम नहीं थी. उसके रहते ज़िन्दगी में हमेशा बहार रहती थी।  
उससे लड़ना झगड़ना तो चलता रहता था, लेकिन प्यार इतना था कि उसके बिना भी कभी रहना होगा ऐसा मैं सोच भी नहीं सकती थी।  

वो मेरी ज़िन्दगी में सांता से कम नहीं थी।  ख्वाहिशें छोटी हों या बड़ी, उन्हें पूरी करके ही दम लेती थी वो।  
लेकिन एक दिन अचानक वो चली गई।  अफ़सोस ये है कि बिना कुछ कहे चली गई।  

उस दिन के बाद से मेरी कई ख्वाहिशें अधूरी रह जाती हैं।  अब वो कभी नहीं आती, 25 दिसम्बर को भी नहीं। लेकिन मैं आँखें बंद करके उसकी भीनी खुशबु खुद में भर लेती हूँ, ताकि उसके होने का एहसास मेरे इर्द गिर्द बना रहे।  

वो मेरी ज़िन्दगी की सांता, वो मेरी बड़ी बहन ....  

Sunday, December 15, 2013

बेलगाम ख्वाहिशें

छोटी छोटी ख्वाहिशें कब बड़ी हो जाती हैं पता ही नहीं चलता.... 
पहले दोस्तों के साथ गन्ने का रस पीने जाना लक्ज़री हुआ करती थी, अब सीसीडी, पिज़्ज़ा हट और डोमिनोज़ जाकर भी मन नहीं भरता ... 
पहले हॉल में पिक्चर देखने को मिलती थी तो खुश हो जाते थे, अब मल्टीप्लेक्स के अलावा कहीं जाने का मन नहीं करता... 
पहले साल में सिर्फ दुर्गा पूजा पर नए कपडे मिलते थे, अब तो दो बार पहनने के बाद ही नया कपडा पुराना लगने लगता है...
इन ख्वाहिशों पर कोई लगाम नहीं है और बेलगाम ख्वाहिशें पूरी हो भी जाएं तो भी दिल में सुकून नहीं है। दरअसल अब मन किसी चीज़ से नहीं भरता और सब चीज़ों से भर भी गया है। ये दौर बड़ा अजीब है, हमें सब चाहिए और ये भी नहीं पता कि आखिर तलाश किस चीज़ की है?
ये अंधी तलाश कई लोगों  के लिए लक्ष्य बन जाती है तो कुछ लोगों को अँधेरे कि गर्त में ले जाती है।  बचपन के साथ जो चीज़ खो जाती है उनमे सुकून, मस्तमौलापन, बेफिक्री और असली ख़ुशी भी शामिल होती है.…